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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३३ मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं । (१) | ( स्वाध्याय करनेके लिए गुरुसे आज्ञा लेना । ) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं ? इच्छं भगवंत, स्वाध्याय करनेकी आज्ञा दीजिए । आज्ञा मान्य है। गुरुसे स्वाध्याय करनेकी परवानगी लेते है। सावद्य योगके पच्चक्खाणका यथार्थ पालन करने के लिए स्वाध्याय अनिवार्य है । देव - गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, मत्थएण वंदामि () (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं । (१) ! इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय करूं ? इच्छं भगवंत, आज्ञा अनुसार स्वाध्याय करता हूं । (गुरुके पाससे स्वाध्याय करनेकी आज्ञा मिलते, ३ नवकार गीनकर स्वाध्याय शुरु करे )
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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