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________________ २२ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित गमनागमन में, (३) इन्द्रियवाले प्राणी को दबाने में, धान्यादि सचित (सजीव) बीज को दबाने तथा वनस्पति को दबाने में, ओस (आकाश पतित सूक्ष्म अपकाय जीव), चिंटी के बिल, पांचो वर्णों की निगोद (फूलन काई आदि) पानी व मिट्टी (या जल मिश्रित मिट्टी, सचित मिश्र कीचड) व मकडी के जाले को दबाने में, मुझसे जो जीव दुखित हुएँ, (५) (४) (जीव इस प्रकार ) - एक इन्द्रिय वाले (पृथ्वीकायादि), दो इन्द्रिय वाले (शंख आदि), तीन इन्द्रिय वाले (चिंटी आदि) चार इन्द्रिय वाले (मक्खी आदि), पांच इन्द्रियवाले (मनुष्य आदि) (६) (विराधना इस प्रकार की ) ढके (या उलटाये), भूमि आदि पर घिसा (घसीटे, या कुछ दबाये), परस्पर गात्रों से पिंडरूप किया, स्पर्श किया, संताप - पीडा दी, अंग भंग किया, मृत्यु जैसा दुःख दिया, अपने स्थान से दूसरे स्थान में हटाये, प्राण से रहित किये । उसका मेरा दुष्कृत (जो हुआ वह) मिथ्या हो । (७) यह एक लघुप्रतिक्रमणसूत्र है । आते-जाते एकेन्द्रिायादि पांच प्रकारके जीवोको किसी भी प्रकारसे दुःख पहुंचा हो, तो वह सब भूल के पापोकी इस सूत्र द्वारा माफी माँग सकते है । आते-जाते जीवोके विराधनाकी विषेश माफी तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं; निग्घायणट्ठाए, ठामि काउस्सग्गं । (१) ( जिस अतिचार दोषोका प्रतिक्रमण किया) उन पापोको विशेष शुद्ध करनेके लिए, उनके प्रायश्चितसे आत्माकी विशुद्धिके लिए,
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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