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________________ १८ गुरुवंदन विधि सहित 1 खामेमि देवसिअं; जं किंचि अपत्तिअं पर पत्तिअं; भत्ते, पाणे; विणए, वेयावच्चे; आलावे, संलावे; उच्चासणे, समासणे; अंतर भासाए, उवरि भासाए; जं किंचि मज्झ विणय परिहीणं, सुहुमं वा, बायरं वा; तुभे जाणह, अहं न जाणामि; तस्स मिच्छामि दुक्कडं. (१) हे भगवन् ! स्वेच्छा से आज्ञा प्रदान करो । दिन में किये हुए (अपराधों की) क्षमा मांगने के लिये मैं उपस्थित हुआ हूँ । आपकी आज्ञा स्वीकार करता हूँ। दिन में हुए (अपराधों की) मैं क्षमा मांगता हूँ। आहार-पानी में, विनय में, वैयावृत्य में, बोलने में, बातचीत करने में, आपसे वर्ष भरमें ऊँचे आसन पर बैठने से, समान आसन पर बैठने से, बीच में बोलने से, टीका करने से जो कोई अप्रीतिकारक, विशेष अप्रीतिकारक हुआ हो, छोटा या बड़ा विनय रहित (वर्तन) मुझसे हुआ हो, (जो) आप जानते हो, मैं नहीं जानता हूँ, मेरे वे अपराध मिथ्या हों । (१) देव- गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, मत्थएण वंदामि मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं । (१) ॥ गुरुवंदनकी विधि पूर्ण ॥
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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