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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३४५ संवत्सरीके पावनदिन पर किया गया प्रतिक्रमण एक अमृतक्रिया है । निम्नलिखित १८ पापस्थानकसे वापस आनेकी यात्रा है प्रतिक्रमण, जिसे सुविधापूर्वक आदरसे हम क्षमायोगमें मंगल प्रवेश करते है । प्रज्ञा और पारदर्शिताके समन्वयसम इस २१वी सदीका यौवनधन जैन धर्मके विरल प्रतिक्रमणके सूत्रार्थका हार्द समझे और आनेवाले वर्षों में ईला दीपक महेता उनके लिए सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्के अनंत द्वार खूले वह मेरे लिए आनंदोत्सव होगा । भक्तजनोको भावसमाधिमें झंझोलनेको सर्वथा समर्थ ऐसे इस सूत्रोने मेरी आंतरचेतनाको शांतरससे मंत्रमुग्ध कीया है । यही अनुभूति सूत्रार्थके संदर्भमेंसे सबको हो वही आशा है। मेरा यह लघु पुरषार्थ मंगलका धाम बने । परम चेतना झंकृत करे ऐसे इस सूत्रार्थसे सबको आत्मब्रह्मकी प्राप्ति हो वही एकमेव अभ्यर्थना सह वंदन । प्राणातिपात मैथुन मान राग अभ्याख्यान परपरिवाद १८ पापस्थानक मृषावाद परिग्रह माया द्वेष पैशून्य माया - मृषावाद अदत्तादान क्रोध लोभ कलह रति -अरति मिथ्यात्वशल्य
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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