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________________ ३४२ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि)। अर्थ-दिनके शेष भागसे संपूर्ण रात्रि पर्यंत पच्चक्खाण करता है (करता हुं) ।इसमें अशन (भूखको शांत करनेके लिए भात आदि द्रव्य), पान (सादा पानी), खादिम (भूना हुआ धान, फल आदि) एवं स्वादिम (दवाई-पानी के साथ) का अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवं सर्व-समाधि-आगार (किसी भी तरीके से समाधि नहीं ही रहती तब) ईन छह आगारों का (छूट) को रखकर त्याग करते है (करता हुँ)। (नोंध : आयंबिल, नीवि, एकासणा, बियासणा करके, ऊठते समय या सूर्यास्तके समय तीन आहारका त्याग करनेवाले श्रावकोको यह पच्चक्खाण करना है।) दुविहार पच्चक्खाण सूत्र अर्थ साथे दिवस-चरिम पच्चक्खाइ (पच्चकखामि) दुविहं पि आहारं असणं, खाइम, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि)।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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