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________________ xxii बिना, संपूर्ण रूप से, जो जीवात्मा आराधना करता है, वह अधिक से अधिक कर्मनिर्जरा साधता है एवं उपयोग रहित अविधिसे हीन-अधिक आराधना करनेवाले मुनिभगवंतभी विराधक माने जाते है। स्त्रीके शरीरके १५ पडिलेहन के बारे में जानकारी महिलाओं का सिर, हृदय एवं कंधा वस्त्रसे हमेशा ढका हुआ रहता है। इसलिए सिर के तीन, हृदय के तीन एवं कंधे के (कांख के भी) चार इस तरह कुल मिलाकर १० पडिलेहना होती नहीं है। इसलिए उन्हें केवल दो हाथकी, तीन+तीन = छह, मुँहकी ३ एवं दोनो पैरों की तीन + तीन = छह, इस तरह कुल१४ पडिलेहणा होती है। जिसमें साध्वी भगवंत को प्रतिक्रमण करते वक्त सिर खुला रखने का व्यवहार होनेसे सिरकी तीन पडिलेहणा के साथ १८ पडिलेहणा होती है। मुहपत्ति एवं शरीरकी पडिलेहणा सुयोग्य रुप से करनी है पर मुहपत्तिका स्पर्श न हो, उसका ध्यान रखते हुए उपयोग अनुसार क्रिया करनी चाहिए।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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