SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित है। जिसमें पानी कितना, कितनी बार और कितने बजे तक पीया जाये, उसके बारे में अनेक उलझनों का अनुभव करते है। प्यासे रहने की ताकत न रहे और असमाधि होने की संभावना रहे तब तिविहार का पच्चक्खाण करनेवाले महानुभाव लोटा-ग्लास या जग भरके जल पीने की बजाय औषध के रूप में हो सके उतना कम एवं कम से कम बार एवं हो सके उतना जल्दी गला भीगे उतना पानी दु:खी हृदय से पी सकते है। तिविहार पच्चक्खाण करनेमें असमर्थ छतां ते तरफ आगळ वधवानी पूर्ण भावना धरावनार महानुभाव कोईक असाध्य रोगना कारणे औषध लीधा वगर, रात्रे समाधि टके तेम न होय अने गुरुभगवंत पासे ते अंगेनी निर्बळता अने असमाधि थवाना कारणोनुं निवेदन करीने संमति लीधेल होय तेवा रात्रिभोजनत्यागनी भावनावाळा आराधकने सूर्यास्त पहले दुविहारका पच्चक्खाण दिया जाता है। जिसमें हो सके तब तक कुछ भी ग्रहण करनेकी प्रक्रिया को टालने के प्रयत्न किये जाते है, फिर भी अगर लेना ही पड़े वैसी परिस्थिति उपस्थित हो तो सूर्यास्त के पश्चात् औषध एवं जल लिया जा सकता है। ___ सूर्यास्त के पश्चात् भोजन करनेवाले को चउविहार-तिविहारदुविहारका पच्चक्खाण नहीं ही दीया जा सकता | वे लोग गुरु भगवंत के पास से जानकर धारणा अभिग्रह पच्चकखाण' (खाने के पश्चात् कुछ भी नहीं खाने का अभिग्रह) ले सकते है। उन्हें रात्रि भोजन का दोष तो लगता ही है, इसमें शंका की कोई बात नहीं है। पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंत दीक्षाग्रहण करते है तब से लेकर जीये तब तक किसी भी प्रकार के शारीरिक-मानसिक
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy