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________________ ३१८ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित अनिवार्य रूपसे मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण करनेवाले महानुभावको २५ थी २८ उपवासका लाभ एक महिने में होता है। यह लाभ छोडना नहीं चाहिए। __ आयंबिल, एकासणुं एवं दूसरा बियासणा करके ऊठते वक्त अनिवार्य रूप से महानुभव को तिविहार एवं मुट्ठिसहिअं का पच्चक्खाण करना चाहिए ।दूसरी बार जब जल ग्रहण करने की आवश्यकता लगे तब मुट्ठि बनाकर श्री नवकारमंत्र एवं मट्ठिसहिअं पच्चकखाण पारने का सूत्र बोलकर जल का इस्तेमाल कर सकते है। शायद कोई आराधक को मुट्ठिसहिअं पच्चकखाण का पारनेका सूत्र न आये तो तुरंत ही गुरु भगवंत के पास से शीख लेना चाहिए। यह न हो तब तक तिविहार का पच्चक्खाण तो अवश्य करते रहना चाहिए। ___ एकलठाण-ठामचउविहार, आयंबिल-एकासणा करनेके पश्चात अनिवार्य रुप से चउविहार का पच्चक्खाण उसी वक्त करना चाहिए |शाम को गुरु एवं देवकी साक्षी में भी चउविहार का ही पच्चकखाण लेना चाहिए। एक साथ चार तरह के आहार का त्याग किया होने की वजह से विशिष्ट तप (आयंबिल-ओकासण आदि) होनेके बावजूद 'पाणहार' की बजाय 'चउविहार' का ही पच्चक्खाण लेना चाहिए। छट्ठ-अट्ठम या उससे अधिक उपवास के पच्चकखाण एक साथ लिये हो तो उसके दूसरे दिन भी पानी ग्रहण करने से पूर्व फिर से पच्चखाण लेने के सूत्र अनुसार 'पाणहार पोरिसिं...' का पच्चकखाण अवश्य लेना चाहिए। चउविहार उपवासका पच्चक्खाण लिया हो तो उसी दिन शाम को गुरु की साक्षी में एवं देवकी साक्षीमें फिर से पच्चक्खाण का स्मरण करना चाहिए |
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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