SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३१३ पहेली दो गाथा प्राकृतमें है। अंतिम दो गाथा गुजरातीमें है।१९मी सदीसे 'आचार-दिनकर' और 'षडावश्यक विवरण' के इस पाठका गुजरातीकरण हुआ है। और तबसे उसे गुजरातीमें ही बोलनेकी परंपरा शुरु हो गई है ऐसा लगता है । (स्थापनाचार्य की स्थापनाकी हो तो दाया हाथ उत्थापन मुद्रामें रखकर एक नवकार गीनना।) पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं || (१) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है |(१) सामायिक पारने की विधि संपूर्ण इति श्री संवच्छरी प्रतिक्रमण विधि समाप्त
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy