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________________ ३०६ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (अब दोनो हाथोको जोडकर, ललाट पर रखकर 'जय वियराई ' सूत्र बोलना ।) दोनो हाथों के जोड, ललाट पर रखकर सूत्र बोले परमात्मासे भक्ति फलरुप १३ प्रकारकी याचना जय वीयराय ! जग गुरु ! होउ ममं तुह पभावओ भयवं ! · भव निव्वेओ मग्गाणुसारिआ इट्ठफल सिद्धि (१) लोग विरुद्धच्चाओ गुरु जण पूआ परत्थकरणं च । सुहगुरु जोगो तव्वयण सेवणा आभवमखंडा. (२) अब दोनों हाथोंको ललाट से नीचेकरके, हाथ ललाट और नाभिके बीच रखना वारिज्जइ जइ वि नियाण बंधणं वीयराय ! तुह समये. तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं. (३) दुक् खओ कम्म खओ, समाहि मरणं च बोहि लाभो अ. संपज्जउ मह एअं, तुह नाह ! पणाम करणेणं. (४) सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणम्. प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम् . (५) हे वीतराग प्रभु ! हे जगद्गुरु ! आपकी जय हो ! हे भगवन् ! आपके प्रभाव से संसार के प्रति वैराग्य, (मोक्ष) मार्ग के अनुसार प्रवृत्ति, इष्ट फल की सिद्धि ...(मुझे प्राप्त हो) (१) लोक विरुद्ध प्रवृत्ति का त्याग, गुरुजनोंके प्रति सन्मान, परोपकार
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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