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________________ ३०४ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित भरत, औरावत, महाविदेह क्षेत्रमें रहेनेवाले साधु भगवंतोकी वंदना जावंत के वि साहू, र भर हेरवय महाविदेहे अ. सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड विरयाणं | (१) भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में जितने भी साधु जो तीन प्रकार से (मन, वचन और कायासे), तीन दंड से (करते नहि, कराते नहि और करने की अनुमोदना) निवृत्त हैं, उन सबको मैं प्रणाम करता हूँ |(१) साधु भगवंत हमे श्री वितराग परमात्माकी पहेचान करवाते है, धर्म मार्गकी समझ देते है और सन्मार्ग पर चलनेकी प्रेरणा करते है । इस सूत्र द्वारा हम उन्हें वंदन करते है । योग्य बहुमान, आदर, अहोभाव द्वारा उनकी वंदना करनेसे कर्मकी निर्जरा होती है | पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमोर्हत् सिद्धा-चार्यो-पाध्याय सर्व साधुभ्यः । (यह सूत्र स्त्रीर्यां कभी भी नहीं बोले) अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को नमस्कार हो । धर्ममार्ग में अंतरायभूत विघ्नोके निवारणकी प्रार्थना उवसग्गहरं पास, पासं वंदामि कम्म घण मुक्कं, विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं (१)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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