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________________ २९४ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (तपागच्छरुपी आकाशमें सूर्य समान ऐसे युगप्रधान श्री सोमसुंदर गुरुके सुप्रसादसे जिसने गणधर विद्यासूरी मंत्रकी सिद्धि की है, उनके शिष्य श्रीमुनिसुंदर सूरीने यह स्तवनकी रचना की है ।) यह सूत्रकी रचना श्री मुनिसुंदरसूरीश्वर महाराजाने की थी जब मेवाड स्थित उदयपूरके पास देलवाडामें मरकीका उपद्रव हुआ था। इस स्तोत्रमें श्री शांतिनाथ प्रभुकी विशेष स्तुति की गई है। इस स्तोत्रकी १२वी गाथामें कर्ताका नाम आता है इसलिए १४वी गाथाका उच्चारण नहीं होता। उसे प्रक्षिप्त गीना जाता है। सामायिक पारनेकी विधि देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! - वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, ___ मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१) चलते चलते किए जीवोके विराधनाकी माफी इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, RC इच्छामि पडिक्कमिउं (१) इरियावहियाए, विराहणाए (२) गमणागमणे, (३) पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा, उत्तिंग, पणग, दग, मट्टी, मक्कडा, संताणा, संकमणे (४)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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