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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित २८५ श्री गोष्ठिकानां शांतिर्भवतु, श्री पौरमुख्याणं शांर्तिभवतु, श्री पौरजनस्य शांर्तिभवतु, श्री ब्रह्मलोकस्य शांतिर्भवतु. (१७) श्रीश्रमणसंघके लिये शान्ति हो । श्रीजनपदों (देशों) के लिये शान्ति हो। श्रीराजाधिपो (महाराजाओं) के लिये शान्ति हो । श्रीराजाओंके निवासस्थानोंके लिये शान्ति हो । श्रीगोष्ठिकोंके-विद्व न्मण्डलीके सभ्योंके लिये शान्ति हो । श्रीअग्रगण्य नागरिकोंके लिये शान्ति हो । श्रीनगरजनोंके लिये शान्ति हो । श्रीब्रह्मलोकके लिये शान्ति हो ।(१७) (६-आहूतित्रयम) ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा ॐ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा (१८) ॐ स्वाहा, ॐ स्वाहा, ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा । (१८) (७-विधिपाठ) ओषा शांति: प्रतिष्ठा यात्रा स्नात्रा द्यवसानेषु शांतिकलशं गृहीत्वा । कुंकुम चंदन कर्पूरा गरु धूपवास कुसुमांजलि समेत: स्नात्र चतुष्किकायां श्रीसंघसमेतः शुचि शुचिवपुः पुष्प वस्त्र चंदना भरणा लंकृतः पुष्पमाला कंठे कृत्वा शांति मुद्घोषयित्वा शांतिपानीयं मस्तके दातव्यमिति (१९)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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