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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित २७९ हे भव्यजनो ! इसी ढाई द्वीपमें भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रमें उत्पन्न सर्व तीर्थंकरोंके जन्मके समयपर, अपना आसन अवधिज्ञानसे कम्पित होने से, सौधर्मेन्द्र देवलोकके अवधिज्ञानसे (तीर्थंकरका जन्म हुआ) जानकर, सुघोषा घण्टा बजवाकर (सूचना देते हैं, फिर ) सुरेन्द्र और असुरेन्द्र साथ आकर, विनय - पूर्वक, श्री अरिहन्त भगवान्‌को हाथमें ग्रहणकर, मेरुपर्वतके शिखर पर जाकर, जन्माभिषेक करनेके पश्चात् जैसे शान्तिकी उद्घोषणा करते है, वैसे ही मैं (भी) किये हुएका अनुकरण करना चाहिये ऐसा मानकर 'महाजन जिस मार्गसे जाय, वही मार्ग', ऐसा मानकर भव्यजनोंके साथ आकर, स्नात्रपीठ पर स्नात्र करके, शान्तिकी उद्घोषणा करता हूँ, अतः आप सब पूजा महोत्सव, (रथ) यात्रा - महोत्सव, स्नात्र - महोत्सव आदिकी पूर्णाहुति करके कान देकर सुनिये ! सुनिये ! स्वाहा । (२) ( ३. शांतिपाठ ) शांतिकी उद्घोषणाका प्रारंभ जगतकी व्यवस्था और पवित्रताका मुख्य आधार तीर्थंकर परमात्मा पर है । ॐ पुण्याहं पुण्याहं, प्रीयन्तां प्रीयन्तां, भगवन्तोर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिन स्त्रिलोकनाथा स्त्रिलोकमहिता स्त्रिलोक-पूज्या स्त्रीलोकेश्वरा स्त्रीलोकोद्योतकराः ॥ (३) ॐ आजका दिन पवित्र है, आजका अवसर मांगलिक है | सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकके नाथ, त्रिलोकसे पूजित, त्रिलोकके पूज्य, त्रिलोकके ईश्वर, त्रिलोकमें उद्योत करनेवाले अरिहन्त भगवान् प्रसन्न हों, प्रसन्न हों । (३)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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