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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित २७७ इस प्रकार मुझसे अभिस्तुत (जिनकी स्तवना की गई है वे) कर्मरज- रागादि मल को दूर किया है (निर्मल) जिन्होंने वे, जरावस्था व मृत्यु से मुक्त (यानी-अक्षय) चौबीस भी (अर्थात् अन्य अनंत जिनवर के उपरान्त २४ जिनवर धर्मशासनस्थापकों मुझ पर अनुग्रह (प्रसन्न हो) करें |(५) कीर्तन, वंदन, पूजन किये गए ऐसे, व लोक (सुर असुर आदि सिद्धजन के समूह) में जो श्रेष्ठ सिद्ध हैं वे मुझे भव-आरोग्य (मोक्ष) के लिए बोधिलाभ एवं उत्तम भावसमाधि दें |(६) । चंद्रो से अधिक निर्मल, सूर्यो से अधिक प्रकाशकर, समुद्रों से उत्तम गांभीर्यवाले (उत्कृष्ट सागर स्वयंभूरमण जैसे गंभीर) और सिद्ध (जीवन्मुक्त सिद्ध अरिहंत) मुझे मोक्ष दें |(७) पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमोर्हत् सिद्धा-चार्यो-पाध्याय सर्व साधुभ्यः । (यह सूत्र स्त्रीर्यां कभी भी नहीं बोले) अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को नमस्कार हो । बृहत्त् शांति सर्व विघ्न निवारक, परम मंगल वाचक, श्री शांतिनाथकी भाववाही स्तवना Sir (१ मंगलाचरण - मंदाक्रान्ता छंद) आर्हतो में (अरिहंत प्रभुके शिष्यो) शांति हो TR भो भो भव्याः शृणुत वचनं MC प्रस्तुतं सर्वमेतद्, ये यात्रायां त्रिभुवन गुरो राहता भक्ति भाजः ।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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