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________________ २६० श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित स्तुत, पूज्य श्री अजितनाथ और श्री शान्तिनाथ मुझे मोक्षसुखके देनेवाले हों | (३२-३३-३४) उपसंहार एवं तव बल विउलं, थुअं मए अजिअ संति जिण जुअलं | ववगय कम्म रय मलं, गई गयं सासयं विउलं | (३५) गाहा तपोबलसे महान्, कर्मरूपी रज और मलसे रहित, शाश्वत और पवित्र गतिको प्राप्त श्री अजितनाथ और श्री शान्तिनाथके युगलकी मैंने इस प्रकार स्तुति की (३५) स्तुति करनेका फल तं बहु गुण प्पसायं, मुक्ख सुहेण परमेण अविसायं। नासेउ मे विसायं, कुणउ अपरिसावि अप्पसायं । (३६) गाहा तं मोएउ अ नंदिं, पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदि। परिसावि अ सुह नंदि, मम य दिसउ संजमे नंदि । (३७) गाहा यह स्तुति बोलने के प्रसंग पक्खिअ चाउमासिअ संवच्छरिए अवस्स भणिअव्वो। सोअव्वो सव्वेहिं, उवसग्ग निवारणो एसो | (३८) अतः अनेक गुणोंसे युक्त और परम-मोक्ष-सुखके कारण सकल क्लेशोंसे रहित (श्री अजितनाथ और श्री शान्तिनाथका युगल) मेरे अंतिम आशीर्वाद
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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