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________________ २५२ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित सुन्दर रूपवाले ! हे तपायी हुई चांदी की पाट जैसी उत्तम, निर्मल, चकचकित और धवल दन्त पंक्तिवाले! हे सर्व शक्तिमान् ! हे कीर्तिशाली ! हे अत्यन्त तेजोमय ! हे मुक्तिमार्गको बतलाने में उत्तम ! युक्ति-युक्त वचन बोलनेमें उत्तम हे योगीश्वर ! हे देवसमूहको भी ध्यान करने योग्य ! हे समस्त विश्वमें प्रकटित प्रभाववाले और जानने योग्य श्री शान्तिनाथ भगवान् ! मुझे समाधि प्रदान करो । (१४) विमल ससि कलाइरेअ सोमं, वितिमिर सूर कराइरेअ तेअं, तिअस वई गणाइरेअ रूवं, धरणिधर प्पवराइरेअ सारं । (१५) कुसुमलया सत्ते असा अजिअं, सारीरे अ बले अजिअं तव संजमे अ अजिअं एस थुणामि जिणं अजिअं । (१६) भुअगपरिरिंगिअं सोम गुणेहिं पावइ न तं नव सरय ससी, अ गुणेहिं पावइ न तं नव सरय रवी । रूव गुणेहिं पावइ न तं तिअस गणवई, सार गुणेहिं पावन तं धरणि धर वई । (१७) खिज्जिअयं तित्थवर पवत्तयं, तमरय रहियं, धीर जण थुअच्चिअं चुअ कलि कलुसं । संति सुह प्पवत्तयं तिगरण पयओ, संतिमहं महामुणिं सरण मुवण मे । (१८) ललिअयं
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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