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________________ २४० श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित सदृशैरिति संगतं प्रशस्य, कथितं सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः (२) कषाय तापा दित जन्तु निर्वृति, करोति यो जैन मुखाम्बुदोद गतः स शुक्र मासोद्भव वृष्टि सन्निभो, दधातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् . (३) कर्मों के साथ स्पर्धा करके और उन पर विजय द्वारा मोक्ष प्राप्त करना और मिथ्यात्वियों के लिये अगम्य ऐसे श्री महावीर स्वामी को नमस्कार हो.(१) वे जिनेंद्र मोक्ष के लिये हों, जिनकी उत्तम चरण कमल की श्रेणी को धारण करने वाली विकसित कमलों की पंक्ति ने (मानो) कहा कि “ समान के साथ इस प्रकार समागम होना" प्रशंसनीय है. (२) ज्येष्ठ मास में होने वाली वृष्टि के समान जो कषाय रूपी ताप से पीड़ित प्राणियों की शांति करता है, जिनेश्वर के मुख रूपी मेघ से प्रगटित वाणी का वह समूह मुझ पर अनुग्रह धारण करो । (३) 'इच्छामो अणुसहि ' पाठ 'नमोस्तु वर्धमानाय' से पहेले गुरुकी आज्ञाकी अपेक्षा रखते है यह दर्शाते है । छह आवश्यक पूर्ण होने पर मंगल स्तुतिके निमित्त यह सूत्रका पाठ होता है । महिलाएँ यह स्तुतिके स्थान पर "संसार दावानल तीन गाथाए बोलती है । ( प्रतिक्रमणकी पूर्णाहुतिके हर्षोल्लास के लिए 'संसारदावानल की थोय' स्त्रीवर्गको बोलनी है।)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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