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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड देता हूं) । २१६ पांचवां आवश्यक - कायोत्सर्ग ( चारित्रधर्ममें लगे अतिचारोकी शुद्धिके लिए दो लोगस्स 'चंदेसु निम्मलयरा' तक या आठ नवकारका काउस्सग्ग करके प्रगट लोगस्स बोलना । ) २४ तीर्थंकरोके नाम स्मरणकी स्तुति लोगस्स उज्जोअगरे; धम्म तित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली (१) उसभ, मजिअं च वंदे, संभव, मभिणंदणं च सुमई च; पउमप्पहं, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे (२) सुविहिं च पुष्पदंतं, सीयल, सिज्जंस, वासुपूज्जं च । विमल, मणतं च जिणं, धम्मं, संतिं च वंदामि (३) कुंथुं, अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं, नमिजिणं च । वंदामि रिट्ठनेमिं पासं तह वद्धमाणं च (४) एवं अभिथुआ विहुय रयमला पहीण जर मरणा । चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु (५) कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्ग बोहिलाभं समाहिवर मुत्तमं दिंतु (६) चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवर गम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु (७) "
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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