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________________ २१२ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ( हाथ जोडकर, मस्तक पर लगाकर सूत्र बोले ।) आवश्यक क्रियामें सर्वजीव राशि और पूज्योको खमाने के साथ विशिष्ट क्रियाका समावेश (कषायोकी क्षमा) (चरवलावाले खडे होकर, हाथ जोडकर वंदन मुद्रामें) आचार्योकी क्षमा आयरिय उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल गणे अ, जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि । (१) सर्व संघकी क्षमा सव्वस्स समण-संघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे,सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि। (२) सर्व जीवोकी क्षमा सव्वस्स जीव रासिस्स, भावओ धम्म निहिअ नियचित्तो; सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि. (३) आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक, कुल और गण के प्रति मैनें जो कोई कषाय किये हों, उन सबकी मैं तीन प्रकार से (मनवचन-कायासे) क्षमा माँगता हूँ। (१) पूज्य सकल श्रमण संघ को मस्तक पर अंजलि कर, सबसे क्षमा मांगकर, मैं भी सबको क्षमा करता हूँ | (२) अपने मन को धर्म भावना में स्थापित कर, सर्व जीवों के समूह से क्षमा मांगकर, मैं भी सबको क्षमा करता हूँ | (३)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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