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________________ २०८ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (दायां हाथ चरवला या कटासणा पर स्थापित करके) जंकिंचि अपत्ति, परपत्तिअं, भत्ते, पाणे, विणले, वेयावच्चे, आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे, अंतरभासाओ, उवरि भासाओ, जंकिंचि मज्झ विणयपरिहीणं सहुमं वा, बायरं वा, तुब्भे जाणह, अहं न जाणामि, । तस्स मिच्छा मि दुक्कडं. आहार-पानीमें, विनयमें, वैयावृत्यमें, बोलनेमें, बातचीत करनेमें, उच्च आसन रखनेमें, समान आसन रखनेमें, बीचमें बोलनेसे, गुरुकी बातसे उपर हो के बोलनेसे, गुरुवचनकी टीका करने जैसा जो कोई अप्रिय या विशेष अप्रीति उपजे ऐसा कार्य किया हो, मुझसे कोई सुक्ष्म या स्थुल, कम या ज्यादा, जो कोई विनयरहित वर्तन हुआ हो, जो आप जानते हो परंतु मै नहीं जानता, ऐसा जो कोई अपराध हुआ हो तो ते संबंधी मेरे सब अपराध मिथ्या हो । (अब अवग्रहसे बहार नीकल कर दो वांदणा देना) वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१) H
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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