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________________ २०४ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित 'देवसिअ वंदितु ' बोलनेके बाद जो संवत्सरी प्रतिक्रमणकी क्रिया शुरु की थी, वह क्रिया अब समाप्त होती है। उसके साथ संवत्सरी पापोके प्रतिक्रमणके आलोचनाकी मंगलविधि संपूर्ण होती है। बाकी रहा दैवसिअ प्रतिक्रमण अब शुरु होता है। वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१) (२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गह, (२) निसीहि (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे) अ हो का यं काय संफास खमणिज्जो भे ! किलामो ? ___(३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बहु सुभेण भे ! दिवसो वइक्कतो (३) (४- संयमयात्रा पृच्छा स्थान) ज त्ता भे (४) (५-त्रिकरण सामर्थ्यकी पृच्छा स्थान) ज व णि जं च भे (५) (६-अपराध क्षमापना स्थान) खामेमि खमासमणो ! देवसिवइक्कम (६)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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