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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित वर्षभरमें क्षमाश्रमण के प्रति तैंतीस में से अन्य जो कोई भी आशातना कि हो (उसका ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । जो कोई मिथ्या भाव द्वारा, मन, वचन या काया के दुष्कृत्य द्वारा; क्रोध, मान, माया या लोभ से; सर्व काल में, सर्व प्रकार के मिथ्या उपचारों से या सर्व प्रकार के धर्म अतिक्रमण से हुए आशातना द्वारा मुझसे जो कोई अतिचार हुआ हो, हे क्षमाश्रमण ! उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ एवं (अशुभ प्रवृत्तियों वालीं) आत्मा का त्याग करता हूँ । २०० (दायां हाथ चरवला या कटासणा पर स्थापित करके) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! समाप्त खामणेणं अब्भुडिओमि अभितर संवच्छरीअं खामेउं ? 'इच्छं’ खामेमि संवच्छरीअं, बार मासाणं, चोवीस पक्खाणं, त्रणसो साठ राई दिवसाणं, जंकिंचि अपत्तिअं, परपत्तिअं, भत्ते, पाणे, विणओ, वेयावच्चे, आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे, अंतरभासाओ, उवरिभासाओ, जंकिंचि मज्झ विणय परिहीणं सहुमं वा, बायरं वा, तुम्भे जाणह, अहं न जाणामि, तस्स मिच्छामि दुक्कडं. हे भगवन्, इच्छापूर्वक आज्ञा दिजिए बारह मास, चोबीस पक्ष, तीन से साठ रात्रि - दिनके वार्षिक पश्चातापका अपराध आहार
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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