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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित १९५ (अब मुहपत्तिका पडिलेहण करना और दो वांदणा देना) १- सूत्र, अर्थ, तत्त्व करी सद्दहुं, २ - सम्यक्त्व मोहनीय, ३- मिश्र मोहनीय, ४- मिथ्यात्व मोहनीय परिहरे, ५- काम राग, ६- स्नेह राग, ७- दृष्टि राग परिहरे, ८- सुदेव, ९- सुगुरु, १०- सुधर्म आदएं, ११- कुदेव, १२- कुगुरु, १३- कुधर्म परिहरे, १४- ज्ञान, १५- दर्शन, १६- चारित्र आदएं, १७- ज्ञान विराधना, १८- दर्शन विराधना, १९- चारित्र विराधना परिहरु, २०- मनगुप्ति, २१- वचनगुप्ति, २२- कायगुप्ति आदएं, २३- मनदंड, २४- वचनदंड, २५- कायदंड परिह. शरीरके अंगोके पडिलेहणके २५ बोल (बायां हाथ पडिलेहतां) १- हास्य, २- रति, ३- अरति परिहरे. (दांया हाथ पडिलेहतां) ४-भय, ५- शोक,६- दुर्गंछा परिहरे.
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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