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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित १९३ नहीं, खण्डित नहीं ऐसा कायोत्सर्ग हो । जहाँ तक (नमो अरिहंताणं बोल) अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करने द्वारा (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड देता हूं)। ( अब ४० लोगस्सका काउस्सग्ग 'चंदेसु निम्मलयरा' तक और एक नवकार करना, या १६० नवकार करना, फिर प्रगट लोगस्स बोलना।) २४ तीर्थंकरोके नाम स्मरणकी स्तुति लोगस्स उज्जोअगरे; धम्म तित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली (१) उसभ, मजिअंच वंदे, संभव, मभिणंदणं च सुमई च; पउमप्पह, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे (२) सुविहिं च पुष्फदंतं, सीयल, सिज्जंस, वासुपूज्जं च। विमल, मणंतं च जिणं, धर्म, संतिं च वंदामि (३) कुंथु, अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं, नमिजिणं च। वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च (४) एवं मए अभिथुआ विहुय रयमला पहीण जर मरणा। चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु (५) कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा | आरुग्ग बोहिलाभं समाहिवर मुत्तमं किंतु (६) चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा। सागरवर गम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु (७)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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