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________________ १८६ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित जैसे सुशिक्षित वैद्य, व्याधि का शीघ्र शमन कर देता है वैसे ही सम्यग्दृष्टि श्रावक उस अल्प कर्मबंध का भी प्रतिक्रमण, पश्चात्ताप व प्रायश्चित्त-पच्चक्खाण आदि उत्तरगुण द्वारा शीघ्र नाश कर देता है | (३७) जहा विसं कुट्ठ गयं, मंत मूल विसारया विज्जा हणंति मंतेहिं, तो तं हवइ निविसं । (३८) एवं अट्ठ विहं कम्मं, राग दोस समज्जिअं आलोअंतो अ निंदंतो, खिप्पं हणइ सुसावओ | (३९) जैसे पेट में गये हुए जहर को मंत्र और जडीबुट्टी के निष्णात वैद्य मंत्रों से (जहर को) उतारते हैं या जडीबुट्टी जिससे वह विषरहित होता है वैसे ही प्रतिक्रमण करनेवाला सश्रावक अपने पापों की आलोचना व निंदा करता हुआ राग और द्वेष से उपार्जित आठ प्रकार के कर्म को शीघ्र नष्ट करता है । (३८,३९) । कय पावो वि मणुस्सो, आलोइअ निंदिअ गुरु सगासे होइ अइरेग लहुओ, ओहरिअ भरुव्व भारवहो । (४०) जैसे मजदूर सर पर से भार उतारते ही बहुत हल्का हो जाता है, वैसे पाप करने वाला मनुष्य भी अपने पापों की गुरू समक्ष आलोचना व निंदा करने से एकदम हल्का हो जाता है | (४०) आवस्स एण एएण, सावओ जइवि बहुरओ होइ दुक्खाणमंत किरिअं, काही अचिरेण कालेण । (४१)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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