SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित सहसा रहस्स दारे, मोसुवएसे अ कूडलेहे अ; बीय वयस्सइआरे, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१२) १७७ दूसरा अणुव्रत - झूठ बोलने से अटकने रूप स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के विषय में पांच अतिचार - प्रमाद से अथवा रागादि अप्रशस्त भावों का उदय होने से - १) बिना विचारे किसी पर दोषारोपण करना २) कोई भी मनुष्य गुप्त बात करता हों उन्हें देखकर मनमाना अनुमान लगाना ३) अपनी पत्नी (या पति) की गुप्त बात बाहर प्रकाशित करना ४) मिथ्या उपदेश अथवा झूठी सलाह देना तथा ५) झूठी बात लिखना, इन पांच अतिचारों में वर्षभर में बंधे हुए अशुभ कर्म की मैं शुद्धि करता हूँ । (११-१२) (अदत्तादानके अतिचार) तइए अणुव्वयम्मि, थूलग पर दव्व हरण विरईओ; आयरिया मप्पसत्थे, इत्थ पमाय प्पसंगेणं । (१३) तेना हडप्पओगे, तप्पडिरूवे विरुद्धगमणे अ; कूडतुल कूडमाणे, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१४) तीसरे स्थूल अदत्तादान विरमण अणुव्रत के विषय में पांच अतिचार-प्रमाद से या क्रोधादि अप्रशस्त भावों से १) चोर द्वारा चोरी लाई हुइ वस्तु स्वीकारना २) चोरी करने का उत्तेजन मिले ऐसा वचनप्रयोग करना ३) माल में मिलावट करना ४) राज्य के नियमों से विरुद्ध वर्तन करना और ५) झूठे तौल तथा माप का उपयोग करना अन्य के पदार्थों का हरण करने से अटकनेरूप अदत्तादान विरमण व्रत के अतिचारों द्वारा वर्षभर में लगे हुए कर्मों की मैं शुद्धि करता हूँ । (१३-१४)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy