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________________ १७० श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (जिनेश्वर भगवंतों ने) निषेध किये हुए कृत्यों का आचरण करने से, करने योग्य कृत्यों का आचरण नहीं करने से, (प्रभुवचन पर) अश्रद्धा करने से तथा जिनेश्वर देव के उपदेश से विपरीत प्ररूपणा करने से प्रतिक्रमण करना आवश्यक है | (४८) __(सर्वजीवको क्षमापना) खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे; मित्ती मे सव्व भूएसु, वेरं मज्झ न केणइ । (४९) सब जीवों को मै खमाता हुँ, सब जीवों मुझे क्षमा करें, मेरी सब जीवों के साथ मित्रता (मैत्रीभाव) है तथा किसी के साथ वैर भाव नहीं है |(४९) एवमहं आलोइअ, निंदिअ गरहिअ दुगंछिअं सम्म तिविहेण पडिक्कतो, वंदामि जिणे चउव्वीसं । (५०) इस तरह सम्यक् प्रकार से अतिचारों की आलोचना-निंदा-गर्दा और (पापकारी मेरी आत्मा को धिक्कार हो इस तरह) जुगुप्सा करके, मैं मन वचन और काया से प्रतिक्रमण करते हुए चोवीस जिनेश्वरों को वंदन करता हूँ | (५०) ( अब श्रुतदेवताकी स्तुति सकल संघ एक साथ बोले।) श्रुतदेवताकी स्तुति सुअदेवया भगवई, नाणावरणीय कम्म संघायं, तेसिं खवेउ सययं, जेसिं सुअसायरे भत्ती। (१)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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