SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे) अ हो का यं काय संफास खमणिज्जो भे ! किलामो ? (३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बहु सुभेण भे ! संवच्छरो वइक्कतो (३) (४- संयमयात्रा पृच्छा स्थान) मी ज त्ता भे (४) SANIY (५-त्रिकरण सामर्थ्यकी पृच्छा स्थान) ज व णि जं च भे (५) (६-अपराध क्षमापना स्थान) खामेमि खमासमणो ! संवच्छरीअं वइक्कम (६)आवस्सिआए (अवग्रहमें से बहार नीकलकर, फिरसे आनेका भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा पीछे करे) __ पडिक्कमामि, खमासमणाणं, संवच्छरीआए आसायणाए तित्तीसन्नयराए, जं किंचि मिच्छाए, मण दुक्कडाए, वय दुक्कडाए, काय दुक्कडाए, कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए, सव्वकालिआए, सव्वमिच्छो वयाराए, सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ, तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि (७)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy