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________________ १२८ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित __ तत्र ज्ञानाचार के आठ अतिचारकाले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे वंजण अत्थ तदुभये, अट्टविहो नाणमायारो || (२) ज्ञान नियमित समय में पढ़ा नहीं । अकाल समय में पढ़ा । विनय रहित, बहुमान रहित योगोपधानरहित पढ़ा । ज्ञान जिस से पढ़ा उसके अतिरिक्त को गुरु माना या कहा । देववंदन, गुरुवंदन करते हुए तथा प्रतिक्रमण, सज्झाय पढ़ते या गणते अशुद्ध अक्षर कहा। काना, मात्रा न्यूनाधिक कहे, सूत्र असत्य कहा | अर्थ अशुद्ध किया । अथवा सूत्र और अर्थ दोनों असत्य कहे । पढ़कर भूला। असज्झाय के समय में स्थविरावली, प्रतिक्रमण, उपदेशमाला आदि सिद्धांत पढ़ा। अपवित्र स्थान में पढ़ा या ज्ञानको बिना साफ की हुई घृणित (खराब) भूमि पर रखा । ज्ञान के उपकरण तख्ती, पोथी, ठवणी, कवली, माला, पुस्तक रखने का सापडा, कागज़, कलम, दवात, आदि को पैर लगा, थूक लगा, अथवा थूक से अक्षर मिटाया, ज्ञान के उपकरण को मस्तक के नीचे रखा, अथवा पास में लिए हुए आहार, निहार किया, ज्ञानद्रव्य भक्षण करने वाले की उपेक्षा की, ज्ञान-द्रव्य की सार-संभाल न की, उल्टा नुकसान किया, ज्ञानवान के ऊपर द्वेष किया, ईषा की, तथा अवज्ञा, आसातना की, किसी के पढने में विघ्न डाला, अपने जानपने का मान किया । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवल-ज्ञान, इन पांचों ज्ञानों में श्रद्धा न की | गूंगे, तोतले की हँसी की | ज्ञान में कुतर्क किया, ज्ञान के विपरीत प्ररूपणा की । इत्यादि ज्ञानाचार संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते,अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं | (२)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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