SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित १०७ सुवन्ने अ कुविअ परिमाणे दुपए चउप्पयंमि य, पडिक्कमे देसि सव्वं । (१८) अब पांचवें अणु-व्रत में परिग्रह के परिमाण में अप्रशस्त भाव और प्रमाद के कारण यहाँ लगे अतिचारों का में प्रतिक्रमण करता हूँ |(१७) धन, धान्य, जमीन, मकान, चांदी, सोना, अन्य धातु, द्विपद और चतुष्पद के परिमाण में दिन में लगे सर्व (अतिचारों) का में प्रतिक्रमण करता हूँ |(१८) (आने-जानेके नियमोका अतिचार) गमणस्स उ परिमाणे, दिसासु उड्ढ अहे अतिरिअंच वुड्ढी सइ अंतरद्धा, पढमम्मि गुणव्वए निंदे। (१९) दिशा परिमाण नामक प्रथम गुणव्रत के विषय में १) ऊर्ध्वदिशामें जाने का प्रमाण लाँघने से २) अधोदिशा में जाने का प्रमाण लाँघने से ३) तिर्यग् अर्थात् दिशा और विदिशा में जाने का प्रमाण लाँघने से ४) एक दिशा का प्रमाण कम करके दूसरी दिशा का प्रमाण बढाने से और ५) दिशा का प्रमाण भूल जाने से, पहले गुणव्रत में जो अतिचार लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ | (१९) (भोग उपभोगके अतिचार) मज्जम्मि अ मंसंम्मिअ, पुप्फे अ फले अ गंध मल्ले अ उवभोग परिभोगे , बीअम्मि गुणव्वओ निंदे | (२०)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy