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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित १०५ भावसे-(जीव को) १) मार मारना २) रस्सी आदि के बंधन बांधना ३) अंगछेदन ४) ज्यादा भार रखना और ५) भूखा-प्यासा रखना, प्रथम व्रत के इन पांच अतिचारों से दिनभर में जो कर्म बंधे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ | (९-१०) (मृषावादके अतिचार) बीए अणुव्वयम्मि, परिथूलग अलिय वयण विरइओ आयरिअ मप्पसत्थे, इत्थ पमाय प्पसंगेणं। (११) सहसा रहस्स दारे, मोसुवएसे अ कूडलेहे अ; बीय वयस्सइआरे, पडिक्कमे देसि सव्वं । (१२) दूसरा अणुव्रत-झूठ बोलने से प्रतिबंध रूप स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के विषय में पांच अतिचार-प्रमाद से अथवा रागादि अप्रशस्त भावों का उदय होने से- १) बिना विचार कीये किसी पर दोषारोपण करना २) कोई भी मनुष्य गुप्त बात करता हों उन्हें देखकर मनमाना अनुमान लगाना ३) अपनी पत्नी (या पति) की गुप्त बात बाहर प्रकाशित करना ४) मिथ्या उपदेश अथवा झूठी सलाह देना तथा ५) झूठी बात लिखना, इन पांच अतिचारों से दिनभर में बंधे हुए अशुभ कर्म की मैं शुद्धि करता हूँ | (११-१२) __ (अदत्तादानके अतिचार) तइए अणुव्वयम्मि, थूलग पर दव्व हरण विरईओ; आयरिय मप्पसत्थे, इत्थ पमाय प्पसंगणं| (१३) तेना हडप्पओगे, तप्पडिरूवे विरुद्धगमणे अ; कूडतुल कूडमाणे, पडिक्कमे देसि सव्वं । (१४) तीसरे स्थूल अदत्तादान विरमण अणुव्रत के विषय में पांच
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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