SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित दुविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए, कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि । (9) हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूं । प्रतिज्ञाबद्धत्तासे पापवाली प्रवृत्ति का त्याग करता हूं । ( अतः) जब तक मैं (दो घडी के) नियम का सेवन करूं, (तब तक ) त्रिविधि से द्विविध (यानी) मनसे, वचन से, काया से, (सावद्य प्रवृत्ति) न करूंगा, न कराऊंगा । हे भगवंत ! (अब तक किये) सावद्य (प्रवृत्ति) का प्रतिक्रमण करता हूं, (गुरु समक्ष) गर्हा करता हूं, (स्वयं ही) निंदा करता हूँ, (ऐसी सावद्य-भाववाली) आत्मा का त्याग करता हूं । (१) श्रावकके बारह व्रत संबंधी लगे अतिचारकी क्षमायाचना इच्छामि ठामि काउस्सग्गं, जो मे देवसिओ अइआरो कओ काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाओ, दुव्विचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छिअव्वो, असावग पाउग्गो, नाणे, दंसणे, चरित्ता - चरित्ते, सुए, सामाइए, तिहं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, पंचण्ह मणुव्वयाणं, तिण्हं गुण व्वयाणं, चउन्हं सिक्खा वयाणं, बारस
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy