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________________ ७६ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मों) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है | (9) पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमोर्हत् सिद्धा-चार्यो-पाध्याय सर्व साधुभ्यः । (यह सूत्र स्त्रीयाँ कभी भी नहीं बोले ) अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को नमस्कार हो । स्नातस्याकी थोय - ४ सम्यग्दृष्टि देवीदेवताओकी स्तुति निष्पंक-व्योम नील द्युति मल सदृशं, बालचंद्रा भदंष्ट्रं, मत्तं घण्टारवेण प्रसृत मदजलं, पूरयन्तं समन्तात् । आरूढो दिव्यनागं विचरति गगने, कामदः कामरूपी, यक्ष : सर्वानुभूति र्दिशतु मम सदा, सर्वकार्षेयु सिद्धिम् II (४) बादल-रहित स्वच्छ आकाशकी नील प्रभाको धारण करनेवाले, आलस्यसे मन्द (मदपूर्ण) दृष्टिवाले, द्वितीयाके चन्द्रकी तरह वक्र दंतशूलवाले, गलेमें बँधी हुई घण्टियोंके नादसे मत्त, झरते हुए मदजलको चारों ओर फैलाते हुए ऐसे दिव्य हाथी पर
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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