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________________ ७४ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित शासनरक्षक सम्यग्द्दष्टि देवोके स्मरण द्वारा धर्ममें स्थिरताकी मांग वैयावच्च गराणं, संति गराणं, सम्म दिट्टि समाहि गराणं, करेमि काउस्सग्गं वैयावृत्य करने वालों के निमित्तसे, उपद्रवो की शांति करने वालों के निमित्तसे और सम्यग् दृष्टियों (मुमुक्षुओं) को समाधि उत्पन्न कराने वाले (देवताओं) के निमित्तसे, मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । जिनशासन पर भक्ति रखनेवाले सम्यग्द्दष्टि देवोको शासनदेव कहेते है । ये देव निरंतर भक्ति करते रहते है । जब भी संघमें उपद्रव होता है तब शासनदेव उसका निवारण करके शांतिकी स्थापना करते है। । इस तरह शासनदेवोको याद करके संघकी सुरक्षितता, शांतिमय वातावरण तथा वैयावृत्त्य करनेवाले देवोके स्मरणका उद्देश रहा है । काउस्सग्गके १६ आगार (छूट) का वर्णन अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छा (१) सुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं, (२) एवमाइ एहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो (2) (३) जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि (४) ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं, वोसिरामि (५)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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