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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित प्रभुजीकी वंदना करने के लिए श्रद्धादि द्वारा आलंबन लेकर कायोत्सर्ग करनेका विधान सव्वलोओ अरिहंत - चेईयाणं, ६४ करेमि काउस्सग्गं (१) वंदण वत्तियाए, पूअण वत्तियाए, सक्कार वत्तियाए, सम्माण वत्तियाए, बोहिलाभ वत्तिया, निरुवसग्ग वत्तियाए (२) सद्धाऐ, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं (३) मैं कायोत्सर्ग करता हूं सर्व लोकके अरिहंत प्रभुकी प्रतिमाओं के (मन-वचन-कायसे संपन्न), वंदन हेतु, (पुष्पादि से सम्पन्न ) पूजन हेतु, (वस्त्रादि से सम्पन्न ) सत्कार हेतु, (स्तोत्रादि से सम्पन्न ) सन्मान हेतु, (तात्पर्य, वंदनादि की अनुमोदना के लाभार्थ) (एवं) सम्यक्त्व हेतु, मोक्ष हेतु, (यह भी कायोत्सर्ग 'किन साधनों' से? तो कि) वड्ढमाणीए - बढती हुई, श्रद्धा - तत्वप्रतीति से (शर्म-बलात्कार से नहीं), मेधा - शास्त्रप्रज्ञा से (जडता से नहीं), धृति - चित्तसमाधि से (रागादि व्याकुलता से नहीं) धारणा - उपयोगदृढता से (शून्य-चित्त से नहीं), अनुप्रेक्षा - तत्त्वार्थचिंतन से (बिना चिंतन नहीं), मैं कायोत्सर्ग करता हूं । इस सूत्रको 'लघुचैत्यवंदन ' भी कहा जाता है। जब अनेक जीनालयोमें दर्शन-वंदन करनेका अवसर साथमें आये, और हर जगह 'चैत्यवंदन' करना संभव न हो तब १७ संडासा (प्रर्माजना) पूर्वक तीन बार खमासमण देनेके बाद, योगमुद्रामें 'श्री अरिहंत चेईयाणं सूत्र' बोलकर एक नवकारका काउस्सग्ग करकर, स्तुति बोलकर, फिर एक खमासमण देके लघु चैत्यवंदनका लाभ मिलता है।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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