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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित क्त होनेसे साध्वीजी भगवंत और श्राविकाओंको बोलनेका अधिकार नहीं है। जहां जहां यह सूत्र आता है वहां श्री नवकार मंत्रका उच्चारण प्रचलित है । यह सूत्र विध विध रागोमें बोला जाता है। उसमें गुरु-लघु अक्षर और जोडाक्षरके उच्चारमें बाधन आये उस तरह उसका उच्चारण करना है। यह सूत्रकी रचना श्री सिध्धसेन दिवाकरजी महाराजने की है। उनकी ईच्छा नवकार मंत्रका संस्कृत रुपांतरण करनेकी थी। परंतु गुरु महाराजने यह काम करनेका मना किया और आशातनाके प्रायश्चित रुप उन्हें बारह साल गच्छसे बाहर निकालकर, शासनकी बडी प्रभावना करनेका प्रायश्चित दिया। परंतु इनके जैसे विद्वान पुरुषका बनाया सूत्र अन्यथा न जाए इसलिए श्री श्रमण संघने विविध स्तुति, स्तोत्रो, पुजाकी ढालमें उसे स्थान दिया। यह सूत्र महिलाएं कभी भी नहीं बोल सकती है। स्नातस्याकी थोय - १ महावीर प्रभुके जन्माभिषेककी स्तुति B स्नातस्या प्रतिमस्य मेरुशिखरे, शच्या विभोः शैशवे, । रूपा लोकन विस्मया हृतरस, भ्रान्त्या भ्रमच्चक्षुषा । उन्मृष्टं नयन प्रभा धवलितं, क्षीरोदका शंकया, वक्त्रं यस्य पुन: पुन: स जयति, श्रीवर्द्धमानो जिनः ।। (१) बाल्यावस्थामें मेरु पर्वतके शिखर पर स्नात-अभिषेक कराये हुए प्रभुके रूपका अवलोकन करते हुए उत्पन्न हुई अद्भूत-रसकी भ्रान्ति से चंचल बने हुए नेत्रोंवाली इन्द्राणीने क्षीरसागरका जल रह तो नहीं गया ?' इस शंका से अपनी नेत्रकान्तिसे ही उज्जवल बने हुए जिनेश्वरके मुखको बार-बार पोंछा, वे श्री महावीरजिन जयको प्राप्त हो रहे हैं । (१)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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