SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! दिउं जावणिज्जा निसीहियाए, मत्थएण वंदामि (१) 24. ४५ मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं । (१) I (जैनधर्ममें आज्ञा बिना कुछ नहीं करते है । इसलिए गुरुसे आदेश लेते है।) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? 'इच्छं’ (१) हे भगवंत ! चैत्यवंदन करूं ? आज्ञा मान्य है । (9) सकल कुशल वल्ली पुष्करावर्त्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्प वृक्षोपमानः, भव जल निधि पोतः सर्व संपत्ति हेतु:, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः ॥ (१) सकलार्हत चैत्यवंदन वर्तमान चोबीशी परमात्माकी भाववाही स्तवना सकलार्हत् प्रतिष्ठान मधिष्ठानं शिवश्रियः । भूर्भुव: स्वस्त्रयी शान, मार्हन्त्यं प्रणिदध्महे II (9)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy