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________________ ___ ऋजुसूत्रनय प्रत्युत्पन्नग्राही (वर्तमानकालभावी पर्याय को ग्रहण करने वाला) है। शब्दनय (ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा सूक्ष्मतर विषय वाला होने से) पदार्थ को विशेषतर मानता है॥३॥ समभिरूढ़नय के अनुसार वस्तु का अन्यत्र संक्रमण अवस्तु है। अर्थात् एक शब्द का दूसरे पर्यायवाची शब्द में गमन अवास्तविक हो जाता है। एवंभूतनय व्यंजन (शब्द) और अर्थ एवं तदुभय को विशेष रूप से स्थापित करता है॥४॥ विवेचन-संग्रह और व्यवहार में अन्तर यह है कि संग्रह सामान्यग्राही होने से अभेद को मुख्यता देता है, जबकि व्यवहार विशेषग्राही होने से भेद को ग्रहण करता है। ऋजुसूत्र और शब्दनय मे अन्तर यह है कि ऋजुसूत्र मात्र वर्तमान पर्याय को ग्रहण करता है, जबकि शब्दनय वर्तमान पर्याय को लिंग और वचन के भेद में विशेष रूप में ग्रहण करता है। समभिरूढनय एक शब्द के पर्यायवाची शब्दों को वास्तविक नहीं मानता। उदाहरणस्वरूप, घट, कुट, क्रय ये घट के पर्यायवाची हैं, किन्तु इस नय के अनुसार घट को तभी घट कहा जाता है जब वह जल भरने की क्रिया में प्रयुक्त है। जो टेढा-मेढ़ा कुटिल है उसे कुट कहा जायेगा और जिसे भूमि पर रखकर भरा जाता है उसे ही 'क्रथ' कहना चाहिए। प्रवृत्ति के अनुसार शब्द का वाच्यार्थ भी भिन्न-भिन्न ए होता है। नयों के विविध भेद-आव. नि. में प्रत्येक नय के सामान्य व निक्षेप भेद करके नयों के कुल सात सौ भेद बताये है। प्रथम के तीन नय-नैगम, संग्रह और व्यवहार द्रव्यार्थिकनय है। बाकी तीन पर्याय का ग्रहण करने के कारण पर्यायार्थिकनय कहे जाते है। प्रथम चार नयों में अर्थ प्रधान है और शब्द गौण है, इसलिए इन्हें अर्थनय तथा शेष तीन को शब्दनय माना है। (वि. भा. २२६२) या लोकप्रसिद्ध अर्थ को स्वीकार करने वाले विचार को व्यवहारनय कहा जाता है। जैसे-भौंरा काला है। निश्चयनय परमार्थ को मानता है, वह कहता है भौंरा केवल काला ही नहीं, पाँच वर्ण वाला है। हेय और उपादेय अर्थ को जानना ज्ञाननय है और उपादेय अर्थ में प्रवृत्ति करना क्रियानय है। ये सभी नय जब परस्पर एक-दूसरे से सापेक्ष रहते है, एक को स्वीकार करके दूसरे का विरोध नहीं करते तब सम्यक् नय है। एक-दूसरे से निरपेक्ष होने पर ये मिथ्यानय हो जाते हैं। सम्यक् मिथ्यानय को समझाने के लिए जिनभद्रगणि ने दो दृष्टान्त दिए हैं। जैसे-सात अंधे व्यक्ति हाथी के एक-एक अवयव का स्पर्श करने पर उसके एक-एक अवयव को ही हाथी मानने लग जाते हैं तो वह मिथ्यानय है और जब कोई आँख वाला सम्पूर्ण अवयवों के समुदाय को हाथी बताता है तब वह सम्यक् नय है। ॐ सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ (472) Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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