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________________ ४६२. से किं तं सव्वसाहम्मे ? सव्वसाहम्मे ओवम्मं णत्थि, तहा वि तेणेव तस्स ओवम्मं कीरइ, जहा - अरहंतेहिं अरहंतसरिसं कयं, एवं चक्कवट्टिणा चक्कवट्टिसरिसं कयं, बलदेवेण बलदेवसरिसं कयं, वासुदेवेण वासुदेवसरिसं कयं, साहुणा साहुसरिसं कयं । से तं साहम्मोवणीए । ४६२. (प्र.) जिसमें पूर्ण समानता हो, वह सर्वसाधर्म्यापनीत उपमान क्या है ? (उ.) सर्वसाधर्म्य में उपमा नहीं होती, फिर भी उसी उपमान से उपमेय को उपमित किया जाता है । जैसे अरिहंत ने अरिहंत जैसा कार्य किया, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती जैसा, बलदेव ने बलदेव जैसा, वासुदेव ने वासुदेव के समान, साधु ने साधु के समान कार्य किया । यही सर्वसाधर्म्यापनीत है । यह साधर्म्यापनीत उपमानप्रमाण है। विवेचन - दो भिन्न पदार्थो मे आशिक गुण-धर्मो की समानता देखकर के एक को दूसरे की उपमा देना साधर्म्यापनीत उपमान है। किचित्साधर्म्यापनीत मे कुछ-कुछ समानता को लेकर उपमा दी जाती है। जैसे सर्षप और मेरु पर्वत के बीच संस्थान आदि की अपेक्षा बहुत भेद है, तथापि दोनो मूर्तिमान है और रूप, रस, गंध, स्पर्शवान होने से पौद्गलिक है। इसी प्रकार से सूर्य और खद्योत मे मात्र प्रकाशकता की अपेक्षा समानता है, किन्तु बाकी बातो मे बहुत अन्तर है । इसीलिए ऐसी उपमा किचित्साधर्म्यापनीत कहलाती है। किचित्साधर्म्यापनीत से प्राय. साधर्म्यापनीत उपमा का क्षेत्र कुछ अधिक व्यापक है। इसमे उपमेय और उपमान पदार्थ मे रही समानता अधिक होती है और असमानता बहुत कम रहती है जिससे श्रोता उपमेय वस्तु को तत्काल जान लेता है। प्रायः साधर्म्यापनीत के लिए गो और गवय का उदाहरण दिया है। इसमे गो सास्ना (गलकम्बलगले के नीचे लटकती हुई झालर ) वाली है और गवय (नीलगाय) वर्तुलाकार (गोल) कठ वाला है। लेकिन खुर, ककुद, सीग आदि मे समानता है । इसीलिए यह प्राय साधर्म्यापनीत का उदाहरण है। सर्वसाधर्म्यापनीत मे सब प्रकारो से समानता बताने के लिए उसी से उसको उपमित किया जाता है। यह सत्य है कि दो वस्तुओ में सर्व प्रकार से समानता नही मिलती है, फिर भी सर्व प्रकार से समानता का तात्पर्य यह है कि उस जैसा कार्य अन्य कोई नही कर सकता है। जैसे अरिहत आदि के उदाहरण दिये है कि तीर्थ स्थापना करना इत्यादि कार्य अरिहत करते है, उन्हें अन्य कोई नही करता है। यहाँ उस कार्य की श्रेष्ठता अथवा असाधारणता बताई गई है। लोक-व्यवहार मे भी देखा जाता है कि किसी के किये हुए अद्भुत कार्य के लिए कहा जाता है - इस कार्य को आप ही कर सकते है अथवा आपके तुल्य जो होगा, वही कर सकता है, अन्य नही । सर्वसाधर्म्यापनीत के लिए यह सस्कृत लोकोक्ति प्रसिद्ध है-‘“गगनं गगनाकारं सागरः सागरोपमः । रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव ।” - आकाश कैसा है ? आकाश जैसा, समुद्र समुद्र जैसा ही है । राम-रावण का युद्ध राम-रावण के समान ही था । भावप्रमाण- प्रकरण Jain Education International ( 293 ) The Discussion on Bhaava Pramana For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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