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________________ (२) केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (2) KESHI KUMAR SHRAMAN AND KING PRADESHI केकय- अर्ध जनपद २०७. (क) 'गोयमाइ' समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे केयइ अद्धे नामं जणवए होत्था, रिद्धत्थिमियसमिद्धे सव्वोउयफलसमिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए जाव पडिवे । तत्थ णं के अद्धे जणवए सेयविया णामं नगरी होत्था, रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पाडवा | तीसे णं सेयवियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे एत्थ णं मिगवणे णामं उज्जाणे होत्था - रम्मे नंदणवणप्पगासे, सव्वोउयफलसमिद्धे, सुभसुरभिसीयलाए छायाए सव्वओ चेव समणुबद्धे पासादीए जाव पडिरूवे । २०७. (क) गौतम स्वामी आदि श्रमणों को सम्बोधित कर श्रमण भगवान महावीर ने कहा “हे गौतम! उस काल और उस समय में (इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे रूप काल एवं केशीकुमार श्रमण के विचरने के समय में) इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र में 'केकय - अर्ध' नामक जनपद - देश था, जो भवनादिक वैभव से युक्त, स्तिमित- स्वचक्रपरचक्र के भय से रहित, समृद्ध-धन-धान्यादि वैभव से सम्पन्न था। सर्व ऋतुओं के फल-फूलों से समृद्ध, रमणीय, नन्दनवन के समान मनोरम, प्रासादिक - मन को प्रसन्न करने वाला यावत् अतीव मनोहर था । उस केकय-अर्ध जनपद में 'सेयविया' (श्वेताम्बिका) नाम की नगरी थी । यह नगरी भी ऋद्धि-सम्पन्न, स्तमित- शत्रुभय से मुक्त एवं समृद्धिशाली थी । उस 'सेयविया' नगरी के बाहर ईशानकोण में मृगवन नामक उद्यान था । यह उद्यान रमणीय, नन्दनवन के समान सर्व ऋतुओं के फल-फूलों से समृद्ध और सुखकारी था । उसमें सुगंधित पवन बहता था और सर्वत्र शीतल छाया जिसमें व्याप्त थी । मन को प्रसन्नता मिली थी और वह उद्यान असाधारण शोभा - सम्पन्न था।" शीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा Jain Education International (237) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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