SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 154. That platform (it is used to see the administrative activities) is surrounded by padmavarvedıka (a pillar at the boundary line of the forest-region which is in the shape of a lotus and on which lotus etc. are carved) and is surrounded with a garden. पद्मवरवेदिका का वर्णन १५५. सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उडुं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं उवकारिणसभा परिक्खेवेणं । तीसे णं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वयरामया णिम्मारिट्ठामया पतिट्ठाणा वेरुलियामया खंभा, सुवण्ण-रुप्पमया फलया, नाणामणिमया कलेवरसंघाडगा णाणामणिमया रूवा णाणामणिमया रूवसंघाडगा अंकामया पक्खा, पक्खबाहाओ, जोईरसामया वंसा वंसकवेल्लुयाओ, रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुच्छणी, सव्वरयणामए अच्छायणे । सा णं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं, एग. गवक्खजालेणं, एग. खिंखिणीजालेणं, एग. घंटाजालेणं, एग. मुत्ताजालेणं, एग. मणिजालेणं, एग. कणगजालेणं, एग. पउमजालेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता, तेणं जाला तवणिज्जलंबूसगा जाव चिट्ठति । तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तर्हि तर्हि बहवे हयसंघाडा जाव उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा पासादीया जाव वीहीओ पंतीयो मिहुणाणि लयाओ । १५५. वह पद्मवरवेदिका आधे योजन ऊँची, पॉच सौ धनुष चौडी और उपकारिकालयन जितनी परिधि वाली है। उस पद्मवरवेदिका का वर्णन इस प्रकार है, जैसे कि वज्ररत्नमय नेमा - ( नींव का ऊपर का भाग) है। रिष्टरत्नमय इसके प्रतिष्ठान - मूल पाये हैं । वैडूर्यरत्नमय स्तम्भ हैं। स्वर्ण और रजतमय इसके फलक-पाटिये हैं । लोहिताक्ष (लाल) रत्नों से बनी सूचियाँ - कीलें हैं । इसका कलेवर - ढॉचा विविध मणि - रत्नमय ( चन्द्रकान्त आदि मणि तथा हीरे, माणिक) आदि रत्न हैं तथा इसका कलेवर सघात - भीतरी - बाहरी ढाँचा विविध प्रकार की मणियों से बना हुआ है । अनेक प्रकार के मणि-रत्नों से इस पर चित्र बने हुए हैं। नाना मणि-रत्नों से इसमें रूपक सघात, बेल-बूटों, चित्रो आदि के समूह बने हैं। अंकरत्नमय इसके पक्ष - सभी हिस्से हैं और अंकरत्नमय ही इसके पक्षबाहा - ( घर की बाजू में बरामदे का बाहर निकला भाग -छज्जली) । रायपसेणियसूत्र Jain Education International (146) For Private Personal Use Only Rai-paseniya Sutra www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy