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________________ an In an at on S IS A 5 ଧ ନ ନ ନ ନ କ ନ IF IF IN IF IF F S & IF S S IF I 5555555555555555565555555555555555 सेवक से अपनी पुत्री का विवाह कर दिया और वे सुख से रहने लगे। वैनयिकी बुद्धि के सहारे व्यापारी ने अपने माल को जाने नहीं दिया। (९) ग्रन्थि - पाटलीपुत्र में किसी समय मुरुण्ड नामक एक राजा था। किसी अन्य राजा ने एक 5 बार तीन विचित्र वस्तुएँ भेजीं और उनका रहस्य जानने को कहा। वे वस्तुएँ थीं - एक सूत का टुकड़ा जिसका छोर नहीं था, एक लाठी का टुकडा जिसकी गाँठ दिखाई नहीं देती थी, और एक डिब्बा जिसका ढकना दिखाई नहीं देता था । राजा ने ये वस्तुएँ सभी सभासदों को दिखाईं और उनका रहस्य खोजने को कहा। सभी आश्चर्य से इन वस्तुओं को घुमा घुमा कर देखने के बाद चुप बैठ गये । राजा ने तब आचार्य 5 पादलिप्त सूरि को सादर आमन्त्रित किया और पूछा - "भन्ते ! क्या आप इन वस्तुओं के रहस्य बता सकते हैं?” आचार्यश्री ने एक नजर तीनों वस्तुओं पर डाली और समझ गये कि इन तीनों पर बडी कारीगरी से वस्तुओं के ही रंग के लाख लगा कर संधियों व ग्रन्थियाँ बन्द की गईं हैं जिससे वे दिखाई नहीं पड़तीं। उन्होंने राजा से कहा कि एक बर्तन में उबलता पानी मॅगवाया जाये। जब पानी भरा बर्तन आया तो उन्होंने तीनों वस्तुएँ उसमें डाल दीं। तीनों पर लगी लाख निकल कर अलग हो गई । लाठी के टुकडे का हल्का छोर ऊपर आ गया और गॉठ वाला पानी में डूबा रहा। सूत टुकडे का छोर दिखाई देने लगा । डिब्बे पर का लाख निकल जाने से उसका ढकना भी साफ दिखाई देने लगा। राजा और सभासदों ने आचार्य श्री की वैनयिकी बुद्धि की भूरि-भूरि प्रशंसा की । तब राजा ने आचार्य श्री से कहा कि वे कोई इस प्रकार की विचित्र वस्तु बतावें जो मित्र राजा को भेंट में भेजी जा सकती हों। आचार्यश्री ने एक तूंवा मॅगाकर बड़ी सावधानी से कटवाया और उसमें कुछ रत्न भर कर पुनः काटे हिस्से को लाख से ऐसी सफाई से जोड दिया कि कोई चिन्ह दिखाई न दे। यह तूम्बा राजा ने मित्र राजा को भिजवा दिया और संदेश भेजा कि इस तूंबे को बिना तोडे इसमें से रत्न निकाल लेवें। जब राजा को कुछ दिनों बाद यह समाचार मिला कि मित्र राजा के यहाॅ कोई भी उस तूम्बे में से रत्न नहीं निकाल सका तो उन्होंने आचार्यश्री को सादर प्रशंसा सहित धन्यवाद दिया। (१०) अगड - किसी नगर में एक राजा था। उसका जितना छोटा राज्य था उतनी ही छोटी सेना । एक बार पड़ोस के एक शक्तिशाली राजा ने उस पर आक्रमण कर नगर को चारों ओर से घेर लिया। राजा को और कोई उपाय न सूझा तो उसने नगर में घोषणा करवा दी कि जिसके भी कोई विष हो वह राजा के पास ले आये। कई लोग कई तरह के विष प्रचुर मात्रा में उपस्थित हो गये। राजा ने अपने गुप्तचरों द्वारा वह विष नगर के बाहर के उस कुएँ में वा दिया जो शत्रु सेना के लिए जल का एकमात्र स्रोत था । पास लेकर फ्र इसके पश्चात एक वैद्य एक छोटी सी शीशी में विष लेकर आया। राजा उसे देख कर क्रोध 15 में भर गया - " इतनी देर से आये और इतना सा विष लेकर ?" वैद्य ने राजा को समझाया "महाराज ! कृपा कर क्रोध न करें। यह सहस्रवेधी विष है। अभी तक जितना भी विष आपके Shri Nandisutra 5 श्री नन्दीसूत्र फ्र ( २२६ ) 055555555555555555555555555555555550 Jain Education International 55555555555556 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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