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________________ SEAREFERTILESSFESSELFLFIELESSEURSA CASTESEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEERA राजा संशय में पड़ गया। उसने रोहक से पूछा-"क्या निर्णय किया?" “जब तक शिखा का कुछ भाग सूखता नहीं तब तक दोनों बराबर होते हैं।" उत्तर देकर 5 रोहक फिर सो गया। ___(१३) गिलहरी (खाड़हिला)-चौथे प्रहर में फिर राजा ने पुकारा-“रोहक ! क्या सोच रहे हो?" ___ “महाराज, गिलहरी की पूँछ उसके शरीर से बड़ी होती है या छोटी?" "क्या समझ में आया?" “राजन्, दोनों बराबर होते हैं।" (१४) पाँच पिता-रात बीत गई। पौ फटने पर जब मंगल वाद्य बजने लगे तो राजा की नींद के 4 टूटी किन्तु रोहक गहरी नींद में सोया रहा? राजा के पुकारने पर भी जब वह नहीं उठा तो 5 राजा ने अपनी छड़ी से उसे कोंचा। रोहक जागा तो राजा ने फिर पूछा-"क्यों रोहक ! अब क्या ॐ सोच रहे हो?" ___ "महाराज ! मैं सोच रहा था कि आपके पिता कितने हैं ?" यह अनर्गल बात सुन राजा को पहले तो क्रोध आया पर उसे रोहक की बुद्धिमत्ता पर 5 विश्वास हो चुका था, अतः शांत होकर पूछा-“तुम्हीं बताओ मेरे कितने पिता हैं ?" रोहक ने गंभीर स्वर में कहा-"महाराज ! आपके पाँच पिता हैं। राजा ने आश्चर्य के साथ पूछा-"क्या? बताओ कैसे?" रोहक बोला-“एक तो वैश्रवण (कुबेर), क्योंकि आप कुबेर के समान उदार चित्त हैं। दूसरा पिता है चाण्डाल, क्योंकि शत्रुओं के लिए आप चाण्डाल के समान क्रूर हैं। तीसरा है धोबी, क्योंकि जैसे धोबी गीले कपड़े निचोड़कर सारा पानी निकाल देता है वैसे ही आप भी राजद्रोही तथा देशद्रोहियों का सर्वस्व हर लेते हैं। चौथा है बिच्छू, क्योंकि बिच्छू जैसे डंक मारकर दूसरों को पीड़ा देता है वैसे ही छड़ी की नोंक से कोंचकर आपने मुझे पीड़ा पहुँचाई है और आपके E पाँचवें पिता हैं आपके अपने पिता, पूर्व महाराज, क्योंकि आप उनके ही समान न्यायपूर्वक प्रजा 5 का पालन कर रहे हैं।" राजा इस विश्लेषण को सुन दंग रह गया। नित्य क्रियाओं से निवृत्त हो वह अपनी माता के के पास गया और प्रणाम कर रोहक की कही बातें बताईं। राजमाता ने कहा-“पुत्र ! संभवतः रोहक ठीक ही कहता है। यदि मेरा विकारपूर्वक किसी ओर देखना तेरे संस्कारों का कारण है तो रोहक की बताई बातें ठीक हैं। जब तू गर्भ में था तब एक दिन मैं कुबेर की पूजा करने गई थी। लौटते समय मार्ग में एक धोबी और एक चाण्डाल को देखा। महल में पहुंची तो एक कोने , में बिच्छू युगल को रति-क्रीड़ा में संलग्न देखा। इस पूरे समय में मेरा मन विकारी अवस्था में था , श्री नन्दीसूत्र ( १७८ ) Shri Nandisutra SHEHEEमममममममyyy16 %%紧紧紧期醫醫醫院驗瞭劉端端醫開戰醫醫贸易等等皆男明览场馆%步步步步步5分 SSFERE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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