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________________ जिलजलाMEE MUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण उपसंहार द्वितीय श्रुतस्कन्ध में मूलतः एक ही विषय की चर्चा है। मोक्षमार्ग पर आचार-शैथिल्य एक बाधा ट र स्वरूप है। पुण्योपार्जन मोक्ष की ओर नहीं ऋद्धि की ओर ले जाता है। किन्तु पापकर्मों के क्षय के ड र कारण यदि आत्मा ने अपेक्षाकृत विशुद्धि प्राप्त करली है तो अगले भव में सम्पूर्ण कर्मक्षय कर ट 15 मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। CONCLUSION The second part has just one theme. On the spiritual path laxness in 2 conduct is a hurdle. Acquiring good karmas does not lead to liberation but to a the acquisition of power and glory. However, if the soul has shed bad karmas and attained comparatively greater purity it can shed all the remaining 15 Karmas and attain liberation during the next birth. परिशिष्ट __ पज्जत्तीए-पर्याप्ति-शरीर, अंग, अथवा योग्यता का सम्पूर्ण विकास; किसी कार्य को करने की सम्पूर्ण ट 15 क्षमता का होना। मनुष्य से संबंधी छह कहीं गई हैं-१. आहार पर्याप्ति, २. शरीर पर्याप्ति, ३. इन्द्रिय पर्याप्ति, ड २४. श्वासोच्छवास पर्याप्ति, ५. भाषा पर्याप्ति, तथा ६. मन पर्याप्ति। मनुष्यों में पर्याप्तियाँ क्रमशः विकसित होती हैं और इस विकास-क्रम में यथेष्ट समय लगता है। देवों में ये पर्याप्तियाँ होती तो क्रमशः ही हैं किन्तु समय का डा र अन्तराल क्षण मात्र ही होता है। अंतिम दोनों पर्याप्तियाँ देवों में एक साथ होती हैं अतः देवों में पर्याप्तियों की ट 15 संख्या पाँच कही है। र श्रावस्ती-अठारहवीं शती के जैन यात्रियों के अनुसार अयोध्या के निकट कोना ग्राम ही कभी श्रावस्ती था। ए एक यात्री ने श्रावस्ती का दरियाबाद से साठ मील होना बताया है। वर्तमान में अयोध्या से उत्तर में बलराम स्टेशन 15 से बारह मील अकोना ग्राम है। वही प्राचीन कोना है। इससे पांच मील दूर सहेत-महेत का किला है। आजकल इसे 15 ही श्रावस्ती माना जाता है। तीर्थकल्प में लिखा है कि श्रावस्ती का वर्तमान नाम महेठी है। महेठी सहेत-महेत के र निकट है। ये खंडहर गोंडा जिले में है और कुछ राप्ती नदी के दक्षिण में है जो बहराइच जिले में पड़ते हैं। 51 र कनिंघम ने भी सहेत-महेत को ही श्रावस्ती माना है । 15 साकेतपुरी-प्राचीन कौशल जनपद की राजधानी। इसका प्रचलित नाम अयोध्या भी है। आचार्य हेमचन्द्र ने र इसका एक अन्य नाम कोशला भी बताया है। 5 (390) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRAS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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