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प्रणपण्ण्ण्ण्ण्ज)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ही 5 अमावस्या तथा अष्टमी के दिन वह प्रकट होकर समस्या ग्रसित लोगों की सहायता करता है। अतः उन्हें पूर्वी दा 5 उद्यान में जाकर उसकी सहायता माँगनी चाहिए।
र माकन्दी पुत्र तत्काल पूर्वी उद्यान में गये और यथाविधि यक्ष की पूजा करने लगे। यथा समय यक्ष प्रकट हुआ 15 और उन्होंने उससे सहायता माँगी। २ शैलक ने कहा-“जब समुद्र में आधी दूरी पार कर लोगे तब वह देवी तुम्हें आकर्षित करने के लिए आएगी। र यदि तुमने उसकी बातों पर ध्यान दिया तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से गिरा दूँगा। हाँ ! यदि तुमने उसकी चेष्टाओं पर र ध्यान नहीं दिया और तुम्हारा मन चंचल नहीं हुआ तो मैं तुम्हें उसके चंगुल से छुड़ा लूंगा।" 5 माकन्दी-पुत्रों ने यह शर्त स्वीकार कर ली। यक्ष ने एक विशाल घोड़े का रूप धारण कर लिया। माकन्दी पुत्रों 1 र ने उसकी वन्दना की और उसकी पीठ पर सवार हो गए। यक्ष ने उड़ान भरी और आकाश मार्ग से चम्पानगरी की र ओर यात्रा आरम्भ कर दी। 15 देवी जब महल में लौटी और माकन्दी पुत्रों को नहीं पाया तो उसने अपने अवधिज्ञान का उपयोग करके देखा द P कि वे दोनों शैलक यक्ष की सहायता से समुद्र पार कर भाग रहे हैं। वह तत्काल उनके निकट पहुँची और बोली, 2 "हे माकन्दी पुत्रो ! यदि तुम अपने जीवन की रक्षा करना चाहते हो तो मेरी इच्छा पूरी करो, मुझे प्यार करो। । र अन्यथा मैं अभी अपनी तलवार से तुम्हारे सर काट दूंगी।" 15 माकन्दी पुत्र उसके इस प्रदर्शन से उद्विग्न नहीं हुए। तब उस देवी ने अनेक प्रकार के प्रलोभनों से उन्हें ड
आकर्षित करने की चेष्टा की, पर वे सभी व्यर्थ हो गई। इस पर उसने अपने अवधिज्ञान से जिनरक्षित के मन र झाँककर देखा। उसे जैसे ही वहाँ चंचलता, दुर्बलता दिखाई दी उसने विशेष प्रयत्नों से उसे लुभाया। जिनरक्षित का
मन डिग गया और उसने देवी की ओर घूमकर देखा। शैलक को उसके घूमने और देवी की ओर देखने का 15 आभास हो गया उसने तत्काल जिनरक्षित को अपनी पीठ से गिरा दिया। र उस चण्डिका ने असहाय जिनरक्षित को शैलक की पीठ से गिरते हुए देखा तो तत्काल अपनी तलवार से S र उसके टुकड़े-टुकड़े कर समुद्र में चारों ओर फेंक दिये। इसके बाद उसने जिनपालित को लुभाने के प्रयत्न किये। 5 परन्तु उसके सभी उपाय विफल गये तो वह थककर अपने स्थान को लौट गई। 15 जिनपालित को लेकर शैलक चम्पानगरी जा पहुँचा। वहाँ जिनपालित ने नगर में प्रवेश किया और अपने घर र पहुँचा। वह अपने माता-पिता के पास गया और रोते-रोते जिनरक्षित की मृत्यु के समाचार बताये। समय बीतने पर र उसे शोक से मुक्ति मिली और वह सामान्य जीवन व्यतीत करने लगा। 5 कुछ समय बाद श्रमण भगवान महावीर चम्पानगरी पधारे। जिनपालित ने दीक्षा ले ली। अन्त समय आने पर
उसने एक माह की संलेखना के पश्चात् देह त्यागी और देवलोक में जन्म लिया। वहाँ से वह महाविदेह में जन्म र लेकर मुक्ति प्राप्त करेगा।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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