SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REIDLIRH Muslil Suniwwal । चतुर्थ अध्ययन : षड्जीवनिका । प्राथमिक चौथे अध्ययन में साधु के आचार नियमों का प्रतिपादन है। आचार का आधार है, अहिंसा। अहिंसा का पालन वही कर सकता है जिसे जीव-अजीव का ज्ञान हो, अतः इस अध्ययन में जीवों का ज्ञान कराने के लिए षड्जीवनिकाय का--अर्थात् पृथ्वी, अप, तेजस्, वायु, वनस्पति और त्रस-यों छह प्रकार के जीवों का वर्णन किया गया है। जीवों के वर्णन के साथ ही उन जीवों की हिंसा से बचने का मार्ग बताया है-संयम/चारित्र। अतः चारित्र रूप पंचमहाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया है। चारित्र की शुद्ध परिपालना के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण विधि है-यतना। ___ यतनापूर्वक जीवन-व्यवहार चलाने वाला कर्म-बंधन से किस प्रकार अलिप्त रहता हुआ मुक्त हो सकता है इसकी प्रक्रिया बताते हुए अन्त में मुक्ति का वर्णन है-जो इस अध्ययन का अन्तिम सार है। यही धर्माचरण का चरम परम लक्ष्य है। इसी का सार बताते हुए आचार्य भद्रबाहु ने कहा है जीवाऽजीवाहिगमो, चरित्तधम्मो, तहेव जयणा। उवएसो, धम्मफलं छज्जीवणियाइ अहिगारा॥ -दशवै. नि. ४/१२१६ इस अध्ययन में मुख्य रूप में पाँच अधिकार प्रकरण हैं। १. जीव-अजीव का ज्ञान (सूत्र १ से ९) २. चारित्रधर्म की पद्धति (सूत्र १० से १७) ३. यतना विधि (सूत्र १८ से २३) ४. उपदेश-बंध-अबंध की प्रक्रिया का उपदेश दिया गया है। (श्लोक १ से ११) ५. धर्म-फल-मुक्ति मार्ग का निदर्शन (श्लोक १२ से २५) इस अध्ययन का प्रसिद्ध नाम षड्जीवनिका है। दूसरा नाम है धर्म-प्रज्ञप्ति-अर्थात् धर्म का विशद रूप में कथन। चतर्थ अध्ययन : षड्जीवनिका Fourth Chapter: Shadjeevanika ४३ acinri Oumawww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy