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________________ [ दशम अध्ययन : सभिक्षु । AGESH T प्राथमिक इस अध्ययन का नाम है सभिक्षु अर्थात् वह भिक्षु है। इसके विषय-प्रतिपादन से यह स्पष्ट होता है कि पूर्व के नौ अध्ययनों में जो भिक्षु का उच्च, श्रेष्ठ एवं निर्दोष आचार गोचर बताया गया है तथा प्रथम एवं पाँचवें अध्ययन में भिक्षा की श्रेष्ठ विधि बताई गई है उसका सम्यक रूप से पालन करने वाला ही भिक्षु कहलाता है। आचार्य भद्रबाहु का कथन है जो भिक्खू गुणरहिओ भिक्खं गिण्हइ न होइ सो भिक्खू। -नियुक्ति ३५६ जो भिक्षु के गुणों से रहित होकर केवल उदर-निर्वाह के लिए भिक्षा माँगता है, वह भिक्ष नहीं, भिखारी है। भिक्षु वह है जो अहिंसा, संयम और तप की आराधना के लिए मात्र शरीर- निर्वाह हेतु भिक्षा ग्रहण करता है। ____ आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज ने बताया है-निरुक्त के अनुसार-भेदन करने वाले को (जैसे-काष्ठ-भेदक बढ़ई) तथा भिक्षा माँगने वाले को भी भिक्षु कहा जा सकता है। किन्तु यहाँ पर तो भिक्षु का अर्थ है-यः शास्त्र नीत्या तपसा कर्म भिनत्ति स भिक्षुः-जो शास्त्र नीति के अनुसार तपःश्चरण द्वारा कर्मों का भेदन करता है वही भिक्षु है। इस अध्ययन में भिक्षु की अनेक चारित्रिक, ज्ञानप्रधान व तितिक्षाप्रधान वृत्तियों का निदर्शन कराते हुए कहा है-जो इन गुणों से युक्त है वही भिक्षु है। व्याख्याकार आचार्यों ने बताया है-जिस प्रकार सोने में अनेक गुण होते हैं। वह लचीला, भारी, न जलने वाला, काटरहित, रसायन और विष की घात करने वाला तथा कर्षण छेदन, ताप और ताड़न द्वारा उसकी परीक्षा की जाती है। उसी प्रकार भिक्षु की संवेग, निर्वेद, विवेक और तितिक्षा द्वारा कसौटी की जाती है और तप-ज्ञान-दर्शन-क्षान्ति-मार्दव आदि गुणों से युक्त होने पर ही वह वास्तव में भिक्षु कहलाने का अधिकारी होता है। इस अध्ययन में भिक्षु के माध्यम से मानव-जीवन के सभी आवश्यक उत्तम गुणों का निरूपण किया गया है। जैसे-तितिक्षा, उपशांतभाव, मद-त्याग और इन्द्रिय-संचम आदि आदर्श जो श्रेष्ठ मानव-जीवन के लिए भी आवश्यक है। जिसमें ये गुण होते हैं वही मानव होता है ऐसा भी कहा जा सकता है। इस अध्ययन में २१ गाथाएँ हैं। एक प्रकार से यह पिछले अध्ययनों का उपसंहारात्मक अध्ययन है। HESE KAaja दशम अध्ययन : सभिक्षु Tenth Chapter : Sabhikkhu ३३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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