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________________ बहुं सुणेहिं कन्नेहिं बहुं अच्छीहिं पिच्छइ। न य दिटुं सुयं सव्वं भिक्खु अक्खाउमरिहइ। -८/२० कानों से बहुत सुनने में आता है, आँखों से बहुत देखा जाता है। किन्तु देखा, सुना सब मुँह से 5 नहीं कहना चाहिए। बीयं तं न समायरे-८/३१ एकबार भूल होने पर दुबारा उसे मत दुहराओ। लोहो सव्व विणासणो-८/३८ लोभ सर्वनाश करने वाला है। राइणिएसु विणयं पउंजे-८/४१ बड़ों का सन्मान करो। कुज्जा साहूहिं संथवं-८/५३ भलों की संगति करो। धम्मस्स विणओ मूलं-९/२/२ धर्म का मूल विनय है. असंविभागी न हु तस्स मुक्खो-९/२/२३ साथियों में बाँटकर नहीं खाने वाले को मोक्ष नहीं मिलता। नो इह लोगट्ठयाए तव महिट्ठिज्जा-९/४/४ लौकिक इच्छाओं से तप मत करो। न परं वइज्जा सि अयं कुसीले-१०/१८ दूसरों को दुराचारी या चरित्रहीन मत कहो। संपेहए अप्पगमप्पएणं-चू. २/१२ अपने आप अपना निरीक्षण करो। अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो-चू. २/१६ अपनी इन्द्रियाँ और मन की रक्षा स्वयं करो। इस प्रकार सैकड़ों सूक्तियाँ इस आगम-सागर में बहुमूल्य मणियों की भाँति चमक रही हैं। ये KA सुभाषित कोई गहन आध्यात्मिक और दार्शनिक नहीं किन्तु व्यावहारिक जीवन के पथ-प्रदीप हैं। जीवन में इनका अनुसरण करके हम अपना व्यावहारिक जीवन सुन्दर और शान्तिमय बना सकते । हैं। समाज, परिवार और राजनीति के द्वन्द्व-प्रतिद्वन्द्व, घात-प्रतिघात के बीच व्यक्ति किस प्रकार स्वयं (१६) Mahima GURUITM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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