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________________ Ayuwww [ पंचम अध्ययन : पिण्डेषणा ) प्राथमिक चौथे अध्ययन में श्रमण के पंचमहाव्रत रूप मूलगुणों का वर्णन करने के पश्चात् प्रस्तुत ह पंचम अध्ययन में निर्दोष भिक्षाचरी रूप उत्तरगुणों का वर्णन किया गया है। इस अध्ययन का नाम है पिण्डैषणा। पिण्ड का शब्दार्थ है किसी ठोस वस्तु का समूह/संघात अथवा ठोस खाद्य पदार्थ। जैन आगमों में पिण्ड शब्द मुख्य रूप से भोजन व पानी, अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार के लिए प्रयुक्त हुआ है। अतः पिण्डैषणा का अर्थ होता है पिण्ड (आहार-पानी) की एषणा-शुद्धाऽशुद्धि का निरीक्षण करना, विवेक रखना। एषणा तीन प्रकार की है(१) गवेषणा-आहार की उत्पत्ति सम्बन्धी शुद्धाऽशुद्धि का विवेक। (२) ग्रहणैषणा-आहार लेने सम्बन्धी दोषों का विवेक। (३) परिभोगैषणा-आहार (खाने) सम्बन्धी दोषों का विवेक। भगवान महावीर ने कहा है-श्रमण निर्ग्रन्थ की भिक्षा नवकोटि परिशुद्ध होनी चाहिए। इस नवकोटि परिशुद्ध भिक्षा को प्रथम अध्ययन मैं माधुकरी वृत्ति कहा गया है। नवकोटि शुद्धता इस प्रकार हैभोजन के लिए जीवहिंसा न करें, न करवायें, करने वाले का अनुमोदन न करें। भोजन आदि न मोल लें, न लिवायें लेने वाले का अनुमोदन न करें। भोजन आदि न पकायें, न पकवायें, पकाने वाले का अनुमोदन न करें। -स्थानांगसूत्र ९ इस अध्ययन में भिक्षा में लगने वाले विभिन्न दोषों का भिन्न-भिन्न प्रसंगों के अनुसार वर्णन करके सदोष भिक्षा का निषेध और निर्दोष भिक्षा का विधान करते हुए निर्दोष भिक्षा देने वाले (मुधादायी) और लेने वाले (मुधाजीवी) दोनों को ही सुगति का अधिकारी बताया है। ९० श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra AMPARE OuuuN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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